पुस्तक समीक्षा : कलात्मक जादूपन के साथ-साथ मर्म को मथने में भी सक्षम है रंजीता सिंह 'फलक' का काव्य संग्रह 'प्रेम में पड़े रहना'

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पुस्तक समीक्षा : कलात्मक जादूपन के साथ-साथ मर्म को मथने में भी सक्षम है रंजीता सिंह 'फलक' का काव्य संग्रह 'प्रेम में पड़े रहना'

“खुसरो दरिया प्रेम का, बाकी ऐसी धार, जो उबरा सो डूब गया जो डूबा सो पार.” मध्यकालीन महाकवि के हृदय से उठी यह पुकार आज भी प्रेमभक्तों के दिल में गूंजता रहता है. दूसरी तरफ संतकबीर-“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ. . . .” मीराबाई के शब्द-शब्द में प्रेमाप्लावित कंठ की समर्पित आह गूंजती है. मध्यकाल के स्वर्ण युग का मूल रहस्य प्रेम की हदों का असीम हो उठना है, मानो भक्ति के बहाने करीब हर आत्मशिल्पी कवि के हृदय से प्रेम की तटभ़जक बाढ़ फूट चली हो. प्रेम की काव्यालोचना छटा क्या कहलाती है, इसकी स्थायी अनुभूति करने के लिए मीराबाई से बढ़कर भारतीय साहित्य में कोई भी शिखर नहीं. कह पाना मुश्किल है, कि कृष्ण सबसे ज्यादा राधा और गोपिकाओं में जीवित रहे या मीराबाई में. कृष्ण ने मीराबाई को पा लिया, या मीराबाई ने कृष्ण को? जैसे तुलसी को पाकर राम राम हो गये, वैसे ही मीराबाई को पाकर श्रीकृष्ण. यह जो ढाई आखर वाला मंत्राकार शब्द है, प्रेम वो आदि काल से अब तक कवियों को सबसे प्रिय है.

“खुसरो दरिया प्रेम का, बाकी ऐसी धार, जो उबरा सो डूब गया जो डूबा सो पार.” मध्यकालीन महाकवि के हृदय से उठी यह पुकार आज भी प्रेमभक्तों के दिल में गूंजता रहता है. दूसरी तरफ संतकबीर-“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ. . . .” मीराबाई के शब्द-शब्द में प्रेमाप्लावित कंठ की समर्पित आह गूंजती है. मध्यकाल के स्वर्ण युग का मूल रहस्य प्रेम की हदों का असीम हो उठना है, मानो भक्ति के बहाने करीब हर आत्मशिल्पी कवि के हृदय से प्रेम की तटभ़जक बाढ़ फूट चली हो. प्रेम की काव्यालोचना छटा क्या कहलाती है, इसकी स्थायी अनुभूति करने के लिए मीराबाई से बढ़कर भारतीय साहित्य में कोई भी शिखर नहीं. कह पाना मुश्किल है, कि कृष्ण सबसे ज्यादा राधा और गोपिकाओं में जीवित रहे या मीराबाई में. कृष्ण ने मीराबाई को पा लिया, या मीराबाई ने कृष्ण को? जैसे तुलसी को पाकर राम राम हो गये, वैसे ही मीराबाई को पाकर श्रीकृष्ण. यह जो ढाई आखर वाला मंत्राकार शब्द है, प्रेम वो आदि काल से अब तक कवियों को सबसे प्रिय है. 

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