Bhagat Singh Jayanti 2023 : भाषा पर लिखे एक लेख के लिए भगतसिंह को मिला था 50 रूपए का ईनाम, जो उनके बलिदान के दो साल बाद हुआ प्रकाशित

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Bhagat Singh Jayanti 2023 : भाषा पर लिखे एक लेख के लिए भगतसिंह को मिला था 50 रूपए का ईनाम, जो उनके बलिदान के दो साल बाद हुआ प्रकाशित

28 सितंबर 1907 को जन्मे भगतसिंह को कौन नहीं जानता. देश का बच्चा-बच्चा उनके नाम और उनके बलिदान से वाकिफ है. वो यदि नहीं होते तो देश की रूपरेखा ही कुछ और होती. इतिहास से सिर्फ ‘भगतसिंह’ के नाम को हटा दिया जाए, तो पूरा इतिहास कोई और ही कहानी कहेगा. भारतीय स्वाधीनता-आंदोलन के समूचे दौर में शहीद भगतसिंह जैसा क्रांतिकारी चिंतक व्यक्तित्व दूसरा कोई नहीं हुआ, हालांकि क्रांतिकारियों की एक पूरी पीढ़ी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर गतिशील थी. उनके लेख आज भी प्रासंगिक हैं. प्रस्तुत है ‘भगतसिंह और उनके साथियों के दस्तावेज’ पुस्तक से भाषा की महत्ता पर लिखे उनके लेख का अंश, जिसे उन्होंने पंजाब हिंदी साहित्य सम्मेलन के लिए लिखा था और उनके इस लेख को 50 रुपए का ईनाम भी मिला था. गौरतलब है कि इस पुरस्कृत लेख को भगतसिंह के बलिदान के दो साल बाद प्रकाशित किया गया था.

28 सितंबर 1907 को जन्मे भगतसिंह को कौन नहीं जानता. देश का बच्चा-बच्चा उनके नाम और उनके बलिदान से वाकिफ है. वो यदि नहीं होते तो देश की रूपरेखा ही कुछ और होती. इतिहास से सिर्फ ‘भगतसिंह’ के नाम को हटा दिया जाए, तो पूरा इतिहास कोई और ही कहानी कहेगा. भारतीय स्वाधीनता-आंदोलन के समूचे दौर में शहीद भगतसिंह जैसा क्रांतिकारी चिंतक व्यक्तित्व दूसरा कोई नहीं हुआ, हालांकि क्रांतिकारियों की एक पूरी पीढ़ी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर गतिशील थी. उनके लेख आज भी प्रासंगिक हैं. प्रस्तुत है ‘भगतसिंह और उनके साथियों के दस्तावेज’ पुस्तक से भाषा की महत्ता पर लिखे उनके लेख का अंश, जिसे उन्होंने पंजाब हिंदी साहित्य सम्मेलन के लिए लिखा था और उनके इस लेख को 50 रुपए का ईनाम भी मिला था. गौरतलब है कि इस पुरस्कृत लेख को भगतसिंह के बलिदान के दो साल बाद प्रकाशित किया गया था. 

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