देखा है मैंने तुम्हें आज अभी, सोचा है देखूंगा फिर क्या कभी : त्रिलोचन

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देखा है मैंने तुम्हें आज अभी, सोचा है देखूंगा फिर क्या कभी : त्रिलोचन

20 अगस्त 1917 में उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर (चिरानी पट्टी ग्राम) में जन्मे हिंदी के शीर्ष कवि त्रिलोचन की असली शिनाख्त उनके शब्दों से होती है. वह हिंदी के उन थोड़े कवियों में हैं, सादगी जिनके काव्य का गहना है. तुलसी और निराला की राह पर चलने वाले त्रिलोचन की कविताएं सांस्कृतिक जड़ता को तोड़ते हुए जीवन-संघर्षों के बुनियादी मूल्यों से गहरा सरोकार रखती हैं. वह कवि के रूप में पूरे देश को आत्मसात करने में विश्वास रखते थे. आत्मसात करने की उनकी राह जलसों आदि से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत संपर्कों और संबंधों से गुजरती थी. वह सामयिक आंदोलनों से प्रभावित होने से हमेशा बचते रहे. अखबारीपन को कविता के लिए उन्होंने कभी अच्छा नहीं माना. प्रस्तुत है हिंदी के ख्यात कवि त्रिलोचन की चुनिंदा कविताएं. इन कविताओं को साहित्य अकादेमी से हाल ही में प्रकाशित ‘त्रिलोचन रचना-संचयन’ संग्रह से लिया गया है. इस संग्रह का संपादन और कविताओं का चयन ‘गोबिंद प्रसाद’ ने किया है.

20 अगस्त 1917 में उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर (चिरानी पट्टी ग्राम) में जन्मे हिंदी के शीर्ष कवि त्रिलोचन की असली शिनाख्त उनके शब्दों से होती है. वह हिंदी के उन थोड़े कवियों में हैं, सादगी जिनके काव्य का गहना है. तुलसी और निराला की राह पर चलने वाले त्रिलोचन की कविताएं सांस्कृतिक जड़ता को तोड़ते हुए जीवन-संघर्षों के बुनियादी मूल्यों से गहरा सरोकार रखती हैं. वह कवि के रूप में पूरे देश को आत्मसात करने में विश्वास रखते थे. आत्मसात करने की उनकी राह जलसों आदि से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत संपर्कों और संबंधों से गुजरती थी. वह सामयिक आंदोलनों से प्रभावित होने से हमेशा बचते रहे. अखबारीपन को कविता के लिए उन्होंने कभी अच्छा नहीं माना. प्रस्तुत है हिंदी के ख्यात कवि त्रिलोचन की चुनिंदा कविताएं. इन कविताओं को साहित्य अकादेमी से हाल ही में प्रकाशित ‘त्रिलोचन रचना-संचयन’ संग्रह से लिया गया है. इस संग्रह का संपादन और कविताओं का चयन ‘गोबिंद प्रसाद’ ने किया है. 

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